पुरस्कृत कहानी


जय जिनेन्द्र ।
जीव हिंसा नहीं करने पर आधारित यह कहानी पढ़ें और कमेंट्स दें

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            मनुष्य और जानवर

 

 मनुष्यों का आतंक बहुत बढ गया था।जंगल के सभी जानवर चिन्तित थे ।इस विषय पर सभी ने एक सभा करने की सोची ।सभी के चेहरे पर चिंता की गहरी लकीरें स्पष्ट दिखायी दे रही थी।सभा की अध्यक्षता सबसे बुजुर्ग भालू दादा ने की ।उन्होंने मनुष्यों द्वारा की जाने वाली पेडों की अंधाधुंध कटाई को जानवरों की समस्या का एक मुख्य कारण माना।उनका मानना था कि पेडों की कटाई से दिन पर दिन जंगल खत्म हो रहे हैं।मनुष्य की बढती महत्वाकांक्षा से बडी़ -बडी़ बिल्डिंग बनाने की होड़ मेंं ,जंगल के पशु पक्षियों के आवास स्थल उजड़ गये हैं।

  सभी ने एक स्वर में उनकी इस बात का समर्थन किया ।

   तभी राजू सियार खडा़ हुआ उसने कहा जंगलों के घटने से वर्षा नहीं हो रही है।नदी व तालाब सूख रहे हैं।कल - कारखानों का कचरा नदियों के पानी को दूषित कर रहा है जिस कारण जल के जीव मर रहे हैं

और हम जंगल के वासियों के लिए भी पीने का पानी खत्म हो रहा है ।आज इस स्वार्थी मानव ने अपने पैरों पर भी कुल्हाड़ी मार ली है।आज पानी का संकट इतना विश्वव्यापी हो गया है कि आस्ट्रेलिया सरकार ने तो हमारे दस हजार ऊंट भाइयों को जिंदा मरवा दिया।

      घोर अनर्थ ,घोर अनर्थ कहते हुये राजू सियार का गला रूंध गया ।अब अपनी बात रखने के लिये हाथी चाचा खडे़ हुये ।अपना दुखड़ा सुनाते हुये उन्होंने कहा कि हम हाथी लोग जानवर होकर भी शाकाहारी हैं लेकिन ये मनुष्य जाति के प्राणी जंगल के जानवरों से भी ज्यादा खुंखार और मांसाहारी हो गये हैं ।अपने मूंह के स्वाद के लिये उसने धरती के सारे जीव जंतुओं को खा - खाकर खत्म कर दिया है फिर भी उसकी भूख शांत नहीं हुई है।हमारे हाथी दांतों के लिये हमें भी मारा जा रहा है।मुर्गे, बकरे, मछली ,भैंस, गाय और भी कितने ऐसे जीव जिनके पीछे ये मानव हाथ धोकर पडा़ है।आज इस वजह से प्रकृति का संतुलन ही बिगड़ गया है जिसकी परिणति भूकंप और.बाढ के रूप में हो रही है और हजारों नागरिक बेमौत मर रहे हैं।

पक्षी कौवा भी अपनी परेशानी लेकर खडा हुआ।आंखों में आंसू लिये उसने कहा मानव की मानवता ही खत्म हो गयी है ।पहले हर घर में हम कौवों ,गायों व कुत्तों के लिये रोटियां बनायी जाती थी व पक्षियों के लिये दाना - पानी की व्यवस्था की जाती थी लेकिन आज तो मनुष्य पैसा कमाने के चक्कर में इतना पगला गया है कि उसके घर में अब उसके लिये ही रोटी बननी बंद हो गयी है ।ऐसे में होटलों में खाने वाला प्राणी हमारे भोजन, पानी की चिंता क्यों करे ?,

            संक्रांति पर की जाने वाली पतंग बाजी से कितने पक्षी मारे जाते हैं लेकिन इस सबकी परवाह ये स्वार्थी मनुष्य क्यों करे!हम मूक और बेजुबान पशु पक्षियों के अंगों से मनुष्यों के लिये अनेक प्रकार के सौंदर्य प्रसाधन व कपडे बनाये जा रहे हैं।

   सभी जानवरों की आंखों में उनका दर्द बयां हो रहा था ।कुक्कू बंदर ने भी अपनी बात रखी उसका मानना था कि मनुष्य स्वार्थ मे इतना अंधा और बहरा हो गया है कि इन्हें हमारी तडप ,दर्द, वेदना ,चीख पुकार कुछ नहीं सुनाई देता है और यह जीव खुद को सभ्य मानता है।

उसने आगे कहा हम बेजुबान प्राणियों के हक मे लडऩे वाला इस दुनिया में कोई नहीं है हम तो बस यही प्रार्थना कर सकते हैं कि प्रभु इस मानव नाम के प्राणी को सद्बबुद्धि देना ।ताकि इसके कारनामों से मानवता को शर्मसार ना होना पडे़। 

सभी ने खडे होकर प्रभू से मनुष्यों को सद्बबुद्धि देने की प्रार्थना की और अपने सभी साथी ,जो मनुष्य के कोप का शिकार होकर काल के गाल में समा गये उन सभी के लिये दो मिनट का मौन रखा ।

  

    स्वाती  संदीप जैन

  

    

 

 

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