जिनवाणी किसे कहते हैं


जिनवाणी किसे कहते हैं ‘जयति इति जिन:

.

 

 

जिनवाणी किसे कहते हैं
 ‘जयति इति जिन:' जिन्होंने इन्द्रिय एवं कषायों को जीता है, उन्हें जिन कहते हैं तथा जिन की वाणी (वचन) को जिनवाणी कहते हैं। अपर नाम-आगम, ग्रन्थ, सिद्धान्त, श्रुतज्ञान, प्रवचन, शास्त्र आदि।

  सच्चे शास्त्र का स्वरूप क्या है ?

आप्त अर्थात् वीतराग, सर्वज्ञ और हितोपदेशी का कहा हुआ हो। वादी-प्रतिवादी के खण्डन से रहित हो ! प्रत्यक्ष व अनुमान से विरोध को प्राप्त न हो ! तत्वों का निरूपण करने वाला हो।प्राणी मात्र का कल्याण करने वाला हो।मिथ्यामार्ग का खण्डन करने वाला हो।अहिंसा का उपदेश देने वाला हो। (र.क.श्रा., 9)

 

शास्त्र सच्चे देव का कहा हुआ ही क्यों होना चाहिए ?
अज्ञान और राग-द्वेष के कारण ही तत्वों का मिथ्या कथन होता है। जिन भगवान् अज्ञान और राग-द्वेष से रहित होते हैं। इससे वह जो कुछ भी कहते हैं, सत्य ही कहते हैं। जैसे - आप जंगल से गुजर (निकल) रहे थे, रास्ता भटक गए, आपने किसी से पूछा भाई शहर का रास्ता कौन-सा है, उस सजन को ज्ञात नहीं है तो वह आपको सही रास्ता नहीं बता सकता है और उस व्यक्ति को आपसे राग है तो कहेगा रास्ता यहाँ से नहीं यहाँ से है और वह आपको अपने नगर ले जाएगा एवं आपसे द्वेष है तो आपको विपरीत रास्ता बता देगा भटकने दो इसे। यदि आपसे राग-द्वेष नहीं है और उसे रास्ते का ज्ञान है, तो कहेगा श्रीमान् जी यह शहर का रास्ता है।

 

जिनागम को कितने भागों में विभक्त किया गया है ?
 जिनागम को 4 भागों में विभक्त किया गया है - प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग एवं द्रव्यानुयोग।

 

प्रथमानुयोग किसे कहते हैं ?
 जिसमें तिरेसठ शलाका पुरुषों का वर्णन हो। 169 महापुरुषों का वर्णन, उनके आदर्श जीवन एवं पुण्य-पाप के फल को बताने वाला है। यह बोधि अर्थात् रत्नत्रय, समाधि अर्थात् समाधिमरण का निधान  है। इसमें कथाओं के माध्यम से कठिन-से-कठिन विषय को भी सरल बनाया जाता है। इस कारण आबाल-वृद्ध सभी समझ जाते हैं। प्रथम का अर्थ प्रधान भी होता है। अत: पहले रखा है। (रक श्रा.43) 

 

प्रथमानुयोग में कौन-कौन से ग्रन्थ आते हैं ?
 प्रथमानुयोग के प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार हैं - हरिवंशपुराण, पद्मपुराण, श्रेणिकचरित्र, उत्तरपुराण, महापुराण अदि ।

 

करणानुयोग किसे कहते हैं ?
जो लोक - आलोक के विभाग को, कल्पकालों के परिवर्तन को तथा चारों गतियों के जानने में दर्पण के समान है, उसको करणानुयोग कहते हैं। (र.क.श्रा, 44)

 

करणानुयोग के अपर नाम क्या हैं ?
करणानुयोग के अपर नाम दो हैं - गणितानुयोग और लोकानुयोग।

 

करणानुयोग में कौन-कौन से ग्रन्थ आते हैं ?
करणानुयोग के प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार हैं - तिलोयपण्णति, त्रिलोकसार, लोकविभाग, जम्बूदीवपण्णत्ति अदि ।

 

चरणानुयोग किसे कहते हैं ?
जिसमें श्रावक व मुनियों के चारित्र की उत्पति एवं वृद्धि कैसे होती है, किन-किन कारणों से होती है एवं चारित्र की रक्षा किन-किन कारणों से होती है एवं कौन-कौन से व्रतों की भावनाएँ कौन-कौन सी हैं, उसका विस्तार से वर्णन मिलता है। (र.क.श्रा, 45)

 

चरणानुयोग में कौन-कौन से ग्रंथ आते हैं ?
चरणानुयोग के प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार हैं - मूलाचार, मूलाचारप्रदीप, अनगारधर्मामृत, सागारधर्मामृत, रत्नकरण्ड श्रावकाचार आदि।

 

द्रव्यानुयोग किसे कहते हैं ?
जिसमें जीव-अजीव तत्वों का, पुण्य-पाप, बंध-मोक्ष का वर्णन हो एवं जिसमें मात्र आत्मा-आत्मा का कथन हो वह द्रव्यानुयोग है। प्राय: विद्वान् कर्म सिद्धान्त को करणानुयोग का विषय मानते हैं, जबकि वह द्रव्यानुयोग का विषय है। द्रव्यानुयोग को निम्न प्रकार विभक्त कर सकते हैं। (रक श्रा, 46)

क्या जिनवाणी को माँ भी कहा है ?
हाँ। जिस प्रकार माँ हमेशा-हमेशा बेटे का हित चाहती है, उसे कष्टों से बचाकर सुख प्रदान करती है। उसी प्रकार जिनवाणी माँ भी अपने बेटों अर्थात् मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविकाओं को दु:खों से बचाकर सुख प्रदान करती है, किन्तु कब, जब हम उस माँ की आज्ञा का पालन करें।लौकिक माता सच्चा ज्ञान नहीं देती वह तोह जिनवाणी ही दे सकती है जो वीतराग विज्ञानं का ज्ञान दे वह जिनवाणी है इसलिए जिनवाणी ही सच्चा ज्ञान प्रधानकर सकती है                                    

 

 

 

                             

लौकिक माता

 

4651 Views

Comments


हमने एक शुरुआत की जैनो केलिए और हमे इतना प्यार मिला के अब हम जैनर को बंद कर रहे हे। मई ३१ २०२३ को जैनर ऑफलाइन करदिया जायेगा तो अब सब अपना कोई डाटा / पोस्ट डिलीट करना चाहते हे तो करले अन्यथा हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं रहेगी।

आप सभी का धन्यवाद और मिलते हे फेसबुक पर सदैव की तरह अपने गुरुओ की फोटो को एडिट करके पोस्ट करने केलिए