अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी॥
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की बाते हमे सोचने पर मजबूर करती है की क्या औरत मासूम सी होती है ? फिर आज कल के लोकप्रिय चुटुकुले जिसमें तो औरत को कठोर ह्रदय अत्यचारी दिखाया जाता है, मेरा मासूम सा दिल सोचने पर मजबूर हो जाता है की आखिर औरत क्या है एक पहेली ? जिसको सब जिद्दी घमंडी बददिमाग बोलते है क्या सच में औरत ऐसी होती है ? क्या चलता है उसके दिलो और दिमाग में और क्यों ?
हा प्रक्रति ने औरत और पुरुष की संरचना अलग अलग की है |दोनों के सोचने समझने के तरीके भी अलग होते है | औरत की सहनशक्ति पुरुष के अपेक्षा अधिक होती है तो वही पुरुष का स्वाभिमान अधिक होता है | औरत को प्यार की प्रतिमा कहा जाता है |औरत पुरुष की तुलना में अधिक भावनात्मक होती है |किसी भी औरत को अगर जीतना हो तो उसकी भावना का ध्यान रखो और किसी पुरुष को जीतना हो तो उसके स्वाभिमान का ध्यान रखना होता है |औरत को कोहिनूर हीरा नही चाहिए अपितु उसको वो हाथ चाहिए जो उसको सहला सके | सिर्फ इतना विश्वास की हा कही पर भी तो अगर गिरे तो उसको सम्भाले वाले हाथ है | अगर कोई पुरुष किसी स्त्री को यह दे देता है तो वो पूरा जीवन आधा पेट खा कर भी जीवन का निर्वाह कर लेती है | एसा नही है की स्त्री को सजाने या सवारने का शोक नही होता है |लेकिन औरत केवल आपने आपको तभी सजाना पसंद करती है जब उसको उसका मनमीत देखे | औरत को किसी पर निर्भर होना पसंद होता है |
ऐसा नही की औरत को स्वंत्रतता पसंद नही होती पर उसको बधे रहना पसंद होता है | वो अपने विचारो को तो उड़ने की आज़ादी दे देती है पर अपने आपको नही |अपने आपको परिवार बच्चो में ही उलझाये रहती है | जबकि औरत में असीम शक्ति का भंडार होता है जब वो सहयोग देने पर आती है तो अपने मन तन धन से जो भी होता है उससे अधिक ही कर गुजरती है |जब औरत बनाने पर आये तो घर को स्वर्ग बनती है |जब मिटने पर आये तो महाभारत भी करा सकती है |हा औरत में सर्जनात्मक और विध्वसंक दोनों गुण होते है |
औरत कही गार्गी की तरह विदुषी है,तो कही रम्भा की तरह सुन्दरता की मूरत है कही माँ बनकर बिना मागे अपना प्यार लुटती है ,तो कही पत्नी बनकर तुलसीदास को राह देखती है |
कही परिवार की समाज की अपनी इज्जत बचने के लिए जोहर से भी पीछे नही हटती तो कही अपने मन की मर्गतृष्णा को पाने ले लिए जीवन भर भटकती रहती है |
किसीको न पाकर भी मीरा की तरह चाहना तो कही राधा बनकर क्रृष्ण के प्रेम में डूब जाना |सावित्री बनकर यमराज से भी बिना डरे पति को पाना | औरत ही माँ बनकर शिवाजी को देश प्रेम की शिक्षा देती है |असल में औरत को पुरुष इस लिए नही समझ पता की वो हद में रहता है, और औरत हर काम बेहद करती है | औरत के प्रेम को सीमित नही किया जा सकता औरत तो असीम है अनंत है | हा वो माँ है बेटी है प्रेमिका है पत्नी है भाभी है बहु है चाची है मामी है बुआ है और सास भी है | सोचते रहिये औरत क्या है | एक रहस्य या एक पहेली !!!!!!