जीवन मे जैन पध्दति की प्रासंगिकता
“ जो मोह माया मान मत्सर ,मदन मर्दन वीर हैं।
जो विपुल विघ्नों बीच मे भी,ध्यान धारण धीर हैं।।
जो तरण तारण, भव-निवारण, भव-जलधि के तीर हैं।
वे वंदनीय जिनेश , तीर्थंकर स्वयं महावीर हैं।।“
प्रस्तावना
1.जैन कौन है
- जीवन क्या है
- जैन पद्धति या सिद्धान्त क्या है
- पंच महाव्रत
4.1- अहिंसा महाव्रत
4.2- सत्य महाव्रत
4.3- अचौर्य ( स्तेय ) महाव्रत
4.4 -ब्रह्मचर्य महाव्रत
4.5-अपरिग्रह महाव्रत
5.रिश्तों को सुधारने मे जैन पद्धति का मत
6.भेद विज्ञान
7.जैन पद्धति का सार
7.1-जीव मात्र का कल्याण
7.2-इन्द्रियों पर विजय
7.3-विकल रहित जीवनचर्या
उपसंहार
प्रस्तावना
"जीवन मे जैन पध्दति की प्रासंगिकता"
विषय पर निबंध को लिखने से पूर्व कुछ भावो का शब्दों का सैलाब मन मस्तिष्क पर हावी होने लगा की क्या लिखे।जैन धर्म एक वैज्ञानिकता से भरा हुआ पुर्ण विचार हैं ।जिसको जैन पद्धति भी कह सकते है।
"मैं शब्दों से भर गयी हूँ लबालब
जैन धर्म का गहन मंथन कर रही हूँ"
जैन धर्म को जानने वाले और मानने वाले कई है पर जैन पद्धति का विचार हर व्यक्ति का अलग अलग है ।इसकी वजह है - जैन मत एक तार्किक व बौद्धिक मत है। जिसको निम्न बातों मैं व्यक्त करती हूँ।
1.जैन कौन है
जो जिन के भक्त वो जैन है।
जिन - जिन्होंने ने मोह आदिक राग द्वेष का पूर्ण रूप से त्याग कर दिया है।जो सर्वज्ञ है,वीतरागी हितोपदेशी है।जिन्होंने आठ कर्मो का क्षय किया वो जिन है ।
जैन जिन की भक्ति उनके गुणों की वजह से करते है जैन न तो कोई धर्म है न जाति न पंथ जैन एक विचार है ।जो एक वैज्ञानिक विचारधारा से प्रेरित धर्म ही जैन धर्म है।जैन कुल मैं जन्म लेने से कोई जैन नही होते उस विचारधारा को अपने तार्किक और बौद्धिक क्षमता से जाँच कर अंगीकार करना ही जैन धर्म है।षटकाय के जीवो की रक्षा करने वाला जैन है।अष्ट मूलगुणों को धारण करने वाला जैन है ।अष्ट मूलगुण(पंच उदम्बर ,मध ,मास मधु का त्याग करना अष्ट मूलगुण मे आता है) जैन क्षमा धारण करना जैन धर्म है।
- जीवन क्या है
जीवन क्या है ।प्रथम इस पर विचार करते है ।क्या सिर्फ सांस लेना जीवन है तब तो जो भी भोजन ग्रहण करता है पानी पीता है वो जीवन है ।वैसे तो पशु पक्षी ,पौधो मे भी जीवन है पर क्या है जो मनुष्य को सब से अलग करता है ।मनुष्य के पास जो मस्तिष्क है वह सब से अलग करता है क्युकी सिर्फ मनुष्य ही एक वैचारिक प्राणी है।जो उसको सब से अलग करता है।मनुष्य सिर्फ मोह के वश मे जीता है जीवन का सही अर्थ अपने कल्याण करने मे है।
- जैन पद्धति या सिद्धान्त क्या है
जैन पद्धति या सिद्धातं या यु कहे की जैन धर्म क्या है | जिन के द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलना जैन धर्म पद्धति है| जैन पद्धति एक बहुत ही व्याहारिक ,तार्किक ,वैज्ञानिक और अनुशासनात्मक विचार है |जैन अगाम मे हर बात इस लिए नहीं मणि जाती क्युकी जिन ने कही है बल्कि को कही है इस को हर कसौटी पर रहकर देखा और परखा जाता है |तब आप माने या न माने इसका विचार मानेवाले पर निर्भर होता है |
रात्रि भोजन का त्याग हम सिर्फ इसकी चर्चा करे तो इसके करण है -की सूर्य की रोशनी मे कई जीवाणु जो उत्पन्न नहीं हो पाते जिससे कई आसाधयरोग नहीं होते है |पाचन किर्या ठीक रहती है |
अगर गर्म पानी की बात कहे तो |गर्म पानी मे कई रोगो से लडनेकी शक्ति होती है | एक बून्द पानी मे ३६४८२ जीवाणु होते है |जो की गर्म करने से लगभग ख़तम हो जाते है |बीमारी मे डॉक्टर भी गर्म पानी पीने की सलाह देते है |
- पंच महाव्रत
पांच महाव्रत को जानने से पहले व्रत को जनाना आवश्यक है |हिंसा ,झूठा, चोरी ,कुशील,परिग्रह से विरतका होना व्रत कहलाता है |
व्रतों के दो भेद है -१ अणुव्रत ,२.महाव्रत
हिंसादि पांच पापो का एक देश त्याग अणुव्रत कहलाता है |
हिंसादि पांच पापो का सर्व देश त्याग अणुव्रत कहलाता है |
पांच पाप (हिंसा ,झूठा, चोरी ,कुशील,परिग्रह)का मन वचन काया से नियंत्रण महाव्रत है |जैन धर्म या सिद्धातं त्याग की प्रधानता लिए हुए है जो की मन वचन काया तीनो के अनुयोग से होता है |सिर्फ देहिका त्याग ही नहीं अपितु भावो मे भी त्याग पर प्रधानता दी गई है |
4.1- अहिंसा महाव्रत
जीव मात्र की क्रत करीत अनुमोदना से हिंसा का त्याग अहिन्सा महाव्रत कहलाता है |यहाँ तक की भावो मे भी हिंसा का भाव न आना महाव्रत है | अहिन्सा महाव्रत की भावना इस प्रकार है वचन गुप्ति, मनो गुप्ति ,इर्षा समिति ,आदान निक्छेपन समिति और आलोकिकित्पन भोजन (सूर्य के प्रकाश मे देख कर भोजन व जल ग्रहण करना अहिंसा महाव्रत मे आता है |
4.2- सत्य महाव्रत
जो जैसा देखे सुना उसको वैसा ही कहना सत्य है सत्य महाव्रत की भावना निम्न है
क्रोध ,लोभ ,भय ,हास्य ,का त्याग और अनुविचि भाषण (शास्त्र आज्ञानुसार निर्दोष बोलना ) ये पांच सत्य व्रत की भावना है |
4.3- अचौर्य ( स्तेय ) महाव्रत
भावो से भी किसी की गिरी हुई पढ़ी हुई भूली हुई चीज को बिना उसकी अनुमति के न लेना अचौर्य ( स्तेय ) व्रत है | अचौर्य ( स्तेय ) महाव्रत की भावना निम्न है
शून्यागार अर्थात पर्वत ,गुफा तट आदि स्थानों मे निवास ,विमोचितावास ,(निम्न स्थानों मे रहना )भैक्ष्य शुद्धि (शास्त्रनुसार भिक्षा की शुद्धि रखना ) सद्धर्मीविसवाद ( सह धर्मी भाइयो से विसंवाद नहीं करना )ये | अचौर्य ( स्तेय ) महाव्रत की भावना है|
4.4 -ब्रह्मचर्य महाव्रत
पर स्त्री पुरष का भावो मे भी उसके बारे मे न सोचना ब्रह्मचर्य महाव्रत मे आता है इसकी भावना निम्न है |
रागादि भोग विलास कथा सुनने का त्याग ,मनोहर अंगो को देखने का त्याग ,पहले भोगे हुए विषयो के स्मरण का त्याग ,कामवर्धक गरिष्ठ भोजन का त्याग ,अपने शरीर संस्कारो ( शृंगार ) का त्याग , ब्रह्मचर्य महाव्रत की भावना है |
4.5-अपरिग्रह महाव्रत
परिगह ममत्व को कहते है | परिग्रह को कम करना या ख़त्म करण या नियम मे बधाना अवश्य चाहिए | इसकी भावना निम्न है |
पंच इंद्रियों के द्वारा इष्ट विषय मे राग तथा ानिष्ट विषयो मे द्वेष का त्याग ये परिग्रह की भावनाय है |
5.रिश्तों को सुधारने मे जैन पद्धति का मत
जैन धर्म मे क्रत करीत अनुमोदना से त्याग का विशेष महत्व है |सिर्फ जैन धर्म ही ऐसा धर्म है जिसके व्रत उपवास सिर्फ आत्म कल्याण के लिए होते है न की परिवार पति बच्चो के लिए | स्व के करता है जैन पद्धति ही कहती है की हर जीव आपसे मम्मी जुड़ा है अनंत भावो का नाता होता है |जो घटना आज घटित हुई है उसका बीज बहुत पहल ही हो चूका है| हमे सत्ता रख कर हर बात को सही निंर्णय लेकर चलना चाहिए | कोई व्यक्ति किसी के लिए तो किसी के लिए बुरा अच्छा को है यहाँ सोचने वाली बात है सब हमारे कर्म है जो उदय मे आते है | अतः सत्ता का भाव रखना चाहिए |
पार्श्व मुनिराज पर उपसर्ग हुआ वो भी पुर्जन्म के भावो की वजह सेहुआ | नेमि कुमार और राजकुमारी राजुल की नो भाव की प्रीत थी |हम अगर साता रखे तो कभी रिश्ते उलझे ही नहीं सकते |
6.भेद विज्ञान
जैन धरम मे सिर्फ एक बात पर विशेष जोर दिया गया है वो है भेद विज्ञानं –
"जहा देह अपनी नहीं वह न अपना कोय "
शरीर और आत्मा अलग है |मनुष्य सिर्फ देह को सजाने मे लगा रहता है ये भूल जाता है शरीर नश्वर है |फिर भी दैहिक सुखो मे ख्य रहता है |जैन धर्म मे सिर्फ आत्मा के कल्याण पर जोर दिया गया है |
7.जैन पद्धति का सार
जैन पद्धति का सार है लिखना आशम्भव है |जैन आगम बहुत विशाल है इसके सार को कुछ शब्दों मे लिखना मुश्किल है मे अपने ज्ञान से लिखने जा रही हु जो की बहुत कम है |
7.1-जीव मात्र का कल्याण
जैन धर्म जीव मात्र के कल्याण पर जोर देता है |सब जीव अपने कल्याण मे लगे रहे तो सब का हित होगा |जब हम किसी के कर्त्ता नहीं है तो हमे सब जीवो को छमा करते हुए कार्य करना चाहिए
7.2-इन्द्रियों पर विजय
जैन धर्म मे दूसरी बात बोली गई है वो है-"इन्द्रियों पर विजय" पांच इंद्री पर विजय करना कुय्की मनुष्य इस इंद्री जाल मे फसकर ८४ लाख योनियों मे भटकता है |
7.3-विकल रहित जीवनचर्या
विकल्प रहित जीवन जीना जैन धर्म की प्रमुखता है |
"त्यागू आहार पानी ा०षधि विचार अवसर
टूटे न नियम कोई दृढ़ता हृदय मे लाउ"
जैन धर्म मे विकल्प रहित चर्या पर जोर दिया है |
जिनवाणी के ज्ञान से भुझे लोक अलोक सुवाणी मस्तक नमन देत है तीयो धोक
उपसंहार
सब धर्मो मे सिर्फ पुण्य पर जोर दिया है पर जैन धार मे कहा गया है
"पुण्य चीज कुछ और है धर्म चीज कुछ और
पुण्य जगत का खेल है धर्म मोक्ष का ठौर"
जैन धर्म मे सिर्फ मोक्ष पर जोर दिया है |भोग विलास यही पड़ा रह जायेगा मन को लगो मोक्ष साधना मे भाव से तू तीर जायेगा |
श्री मति अनुपमा आनंद जैन